मनेन्द्रगढ़। कहते हैं बचपन हर गम से अंजाना होता है, लेकिन गरीबी की मार बहुत सारे बच्चों को छोटी उम्र में ही दो जून की रोटी कमाने के लिए ऐसे काम करने को मजबूर कर देती है. जिसे देख कर हम और आप हैरत में पड़ जाते हैं. पढ़ने-लिखने की उम्र में कई बच्चें सड़कों पर जद्दोजहद करते देखे जाते हैं. सड़क के किनारे अक्सर छोटे मासूम बच्चे जिस तरह के कारनामे दिखाते मिल जाते हैं वह आपके और हमारे वश के बाहर की बात है। प्रदेश के सक्ति विधानसभा क्षेत्र से मनेन्द्रगढ़ आकर ऐसी ही बच्ची अपने परिवार की आजीविका का साधन बनी हुई है. जो मनेन्द्रगढ़ के चौक चौराहों में करतब के सहारे अपने परिवार की आजीविका चला रही है
यह 6 वर्षीय बच्ची कभी रस्सी पर दौड़ती तो कभी रस्सी पर अपने दोनों पैरों को साधते हुए नृत्य करती. रस्सी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक वह हवा में लहराते हुए एक लाठी के सहारे संतुलन बनाते हुए एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंच जाती है. करतब दिखाने के बाद वह रस्सी से नीचे आकर लोगों की भीड़ में रुपये लेने पहुंच गई। यह स्थिति तब बनी हुई है जबकि तमाम सरकारें बच्चों के लिए कई जन कल्याणकारी योजनाएं चला रही है। मगर सवाल यही उठता है कि ऐसे बच्चों और उनके परिवार तक इन योजनाओं का लाभ क्यों नहीं पहुंच पाता है।
खास बात तो यह है कि चार सदस्यों का यह परिवार दो सायकल को मालवाहक की तरह बनाए है और उसमें एक सांउड बाक्स के साथ करतब दिखाने वाली सामग्री रखे हैं. इसी वाहन पर बैठकर पूरा परिवार यात्रा करता है. दो वक्त की रोटी के लिए बच्ची की जान को जोखिम में डालते हैं. बच्ची के करतब दिखाने से लोगों द्वारा जो रुपये मिलते है उससे अपने परिवार के सदस्यों का पेट पलता है. बच्ची ने बताया कि एक दिन में उन्हें करीब 300-400 रुपये मिल जाते हैं वही इन बच्चों के द्वारा पढ़ाई करने के दिनों में अपने और अपने परिवार का पेट पाल रहे है
वहीं जब हमनें परिवार के सदस्यों से इनके ठिकाने की बात की तो उन्होंने बताया कि सक्ति से आकर इनका परिवार मनेन्द्रगढ़ से 8 किलोमीटर दूर ग्राम ऊदलकछार रेलवे स्टेशन के समीप हॉट बाजार के पास अपना ठिकाना बनाएं हैं. जहां पूरा परिवार इस भरी बारिस में रहता है