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प्रशासन की अनदेखी के कारण मवेशी गौठानों की जगह सड़कों पर हो रहे हैं लहुलूहान, आखिर कब थमेगा यह सिलसिला ?

राज्य सरकार द्वारा बड़े जोर-षोर और तामझाम से जिले केे शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में गौठान योजना शुरु किया गया था किन्तु अब यही योजना आज दम तोड़ते नजर आ रही है। गौठानों की बात की जाए तो अधिकतर गौठान अपनी बदहाली पर आंसु बहा रहीं है। कई गौठानों में चारा-पानी की व्यवस्था नहीं है तो कहीं अभी तक शेड भी नहीं बना है। सबसे ज्यादा समस्या पानी का है। जिले के अफसर और जनप्रतिनिधियों का दौरा तीन चार गौठानों में ही होता है जहां मवेशियों के लिए प्रर्याप्त व्यवस्था है। शासन द्वारा प्रतिमाह इन गौठानों के लिए लाखों रुपए खर्च करने की बात अब लोगों को हजम नहीं हो रही है।


सरकार ने अपने इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत् गांव-गांव में गौठान का निर्माण अच्छी मानसिकता से किया ताकि गांव के मवेशीयों कोे एक ही स्थान पर सुरक्षित रखकर उन्हें चारा उपलब्ध कराई जा सके। किन्तु सरकार की मनसा अनुरूप गौठान बनाने का उद्देष्य पूर्ण नहीं हो सका है। निर्माण एजेंसियों एवं जिम्मेदार अफसरों ने शासन की इस महत्वाकांक्षी योजना को अपने पाकिट भरने की योजना बना कर रख दिया है। लाखों रुपए खर्च कर गौठान तो बना दिए गए है लेकिन कई गौठानों में एक भी मवेशी नहीं है। गौरतलब है कि जिले में दो सौ से भी अधिक गौठानों का निर्माण कराया गया है। यदि इन गौठानों का दौरा किया जाए तो सच्चाई सबके सामने आ जाएगी। जिले के कई गौठानों में मवेशीयों को छांव तक नसीब नहीं है। उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। गंदगी पसरी है और साफ-सफाई भी नहीं हो रही है। ऐसी स्थिति में इस मानसून सीजन में पशुओं कोे काफी दिक्कत हो सकती है। ग्रामीणों के अनुसार ग्राम पंचायत के गौठान में एक भी गाय नहीं है और न ही इन गौठानों में चारे पानी की व्यवस्था है। कहीं शेड बनाने का काम बंद कर दिया गया है तो कहीं शेड ही नहीं बना है। ग्रामीणों ने बताया कि इन दस गौठानों में गोबर खरीदी नहीं हो रही है और वहां के शेड में गोबर केे स्थान पर मिट्टी बालू व मुरुम रखा गया है। ग्राम पंचायत चांदो के ग्रामीणों के मुताबिक वहां के गौठान में गाय तो दूर शेड तक का निर्माण नहीं कराया गया है और न ही उनके चारा पानी की व्यवस्था की गई है।

काल के गाल में समां रहे हैं मवेषी

शासन द्वारा प्रति वर्ष फसलों की बुआई के पूर्व आवारा मवेषियों की धरपकड़ के लिए रोका-छेका अभियान चलाया जाता है। इस वर्ष भी जिले में यह अभियान हरेली से शुरु किया गया है। बावजूद इसके जिले की सड़कों पर सैकड़ों की संख्या में विचरण करने वाले मवेषी दुर्घटना के षिकार होकर काल के गाल में समां रहे हैं, किन्तु इस ओर तथाकथित जनप्रतिनिधियों और अफसरों का ध्यान नहीं जा रहा है।

गौठानों के रखरखाव के लिए दिए जाते राशि


राज्य शासन द्वारा प्रतिमाह जिलेे के गौठानों के रखरखाव के लिए राशि दिया जाता है। यह राशि कहां खर्च हो रहा है, उसका कोई हिसाब किताब नहीं है जबकि जिले के गौठानों में जब मवेषी ही नहीं हैं तो आखिरकार शासन द्वारा राशि क्यों भेजी जा रही है? छत्तीसगढ़ सरकार गौधन योजना को लेकर देश के लिए मॉडल बनाने के नाम पर ढिंढोरा पीट रही है, लेकिन उसकी जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है।”

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