News Desk।हम एक ऐसी शख्सियत के बारे में बात कर रहे हैं जो पहचान की मोहताज नही है।उन्होंने छत्तीसगढ़,महाराष्ट्र,उत्तरप्रदेश, गुजरात सहित कई अन्य जगहों पर नुक्कड़ नाटक सहित फिल्मों में भी काम किया है।जिसने अपना सारा जीवन इसी में लगा दिया आज उसकी जीवन हांसिये पर है।
मित्रों क्या आप किसी व्यक्ति कलाकार को जानते हैं, जिसने अपना पूरा जीवन नुक्कड़ नाटक में गुजार दिया, जिसे गुजरात में लोक भवाई, बंगाल में जात्रा, उत्तर प्रदेश में नौटंकी, महाराष्ट्र में तमाशा और छत्तीसगढ़ में कला जत्था के नाम से जाना जाता है।उसके द्वारा जनजागरण में पुरा जीवन लगा दिया। उसने 25 साल का समय 22000 से ज्यादा नुक्कड़ नाटक, 100 से ज्यादा विषय और 1000 से ज्यादा कलाकारों का साथ काम करते हुए पूरे देश में सामाजिक मुद्दों पर करोड़ो लोगों को संदेश दिया।
स्कूल काॅलेज में अव्वल,परिवार में अच्छा खासा खेती और व्यवसाय लेकिन जुनून सिर्फ जनता के बीच जन चेतना का।आज हम बात कर रहे हैं ऐसे ही एक नुक्कड़ के नायक और सार्थक सिनेमा के नए पहचान के रूप में उभर रहे मदारी आर्ट्स के आनन्द कुमार गुप्त के बारे में जो आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं जो एक छोटे से शहर अम्बिकापुर से ताल्लुकात रखते है।लेकिन केन्द्र और राज्य सरकार की अनदेखी ने इस महान कलाकार को गुमनाम कर दिया है।
देश विदेश में चर्चित शिक्षा का संदेश और दिव्यांगो को प्रोत्साहित करती हुई दो हिन्दी फिल्में लंगड़ा राजकुमार और आई.एम.नाॅट ब्लाईंड साथ ही छत्तीसगढ़ शासन की योजनाओं पर आधारित फिल्म नवा बिहान तथा 6 डाक्यूमेंट्री एवं 50 से ज्यादा संदेश परक एवं पुरस्कृत लघु फिल्में की है। आनन्द कुमार गुप्त के कार्यों की प्रशंसा देश के वर्तमान और पूर्व प्रधानमंत्री के साथ भारत रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी सहित छत्तीसगढ़ प्रदेश एवं देश के 10 राज्यों के मुख्यमंत्री सहित 10 से ज्यादा आई.ए.एस.आई.पी.एस.आई.एफ.एस.50 से ज्यादा सामाजिक संस्थाएँ एवं कई जिला प्रशासन के द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। कभी छत्तीसगढ़ प्रदेश राज्य निर्माण के लिए प्रदेश भ्रमण,जनजागरण के लिए कई बार राज्य एवं देश का भ्रमण,सेंसर बोर्ड में लैंग्वेज एक्सपर्ट के रूप में कार्य कर चुके तथा सरगुजा सहित छत्तीसगढ़ के सिनेमा को अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर स्थापित करने के प्रयासरत् आनन्द कुमार गुप्त आज हांसिए पर है। क्या ऐसा हो सकता है कि समाज, केन्द्र और राज्य सरकार इस कलाकार को काम और सम्मान देकर जनजागरण के लिए प्रोत्साहित करता रहे। नहीं तो मुझे फिर से कहना पड़ेगा कि ना खुदा ही मिला, ना विसाल-ए-सनम, ना इधर के रहे ना उधर के।