समान नागरिक संहिता : आधुनिक समय में पुराने पड़ते मज़हबी क़ानूनों में बदलाव की तरफ़ एक कदम
लेखक निर्मल कुमार भारतीय (समाज व आर्थिक मामलों के जानकार हैं)यह उनके निजी विचार हैं।
धर्म और धर्म के बनाए हुए नियम इंसानी ज़िंदगी की खुशहाली के लिए बनाए गए हैं। प्रत्येक धर्म अपने आदेशों में मानव कल्याण की शिक्षा देता है। पवित्र कुरान में इंसानियत की भलाई के सैंकड़ों आदेश मौजूद है, यहां तक कि किसी दूसरे इंसान को पीड़ा न पहुंचे उसके लिए कुरान में इतरा कर चलने से भी मना करते हुए यह कहा गया है कि इतराने वालों को अल्लाह पसंद नहीं करता। जहां पवित्र कुरान में जमीन पर फसाद करने वालों की निंदा की गई है वहीं दूसरी तरफ किसी बेगुनाह का कत्ल करने वाले को सारी इंसानियत का कातिल कहा गया है। पवित्र कुरान के सारे के सारे आदेशों के पीछे जनकल्याण की भावना निहित है और यही वजह है कि सारी जिंदगी अहले मक्का का जुल्म सहने के बाद, फतह मक्का के अवसर पर बदला लेने के सर्वसम्मत कानून के मौजूद होने के बाद भी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने जुल्म करने वालों को आम माफी का ऐलान किया।
भारत एक पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य है, जिसमे संविधान ने सभी धर्मों और जातियों के लोगों को समान अधिकार और अवसर दिए जाने की बात की है। समान नागरिक संहिता जिसे यूनिफार्म सिविल कोड (UCC) भी कहा जाता है, भारत के संविधान निर्माताओं द्वारा उसे आने वाले समय में लागू करने की बात की गई थी। देश आजाद होने के 75 साल बाद अब शायद यही उपयुक्त समय है कि देश में समान नागरिक संहिता को लागू किया जाए। सबसे पहले तो हमें इस बात को समझना होगा कि समान नागरिक संहिता किसी भी रूप में धर्म के सिद्धांतों के विपरीत नहीं है, तात्कालिक परिस्थितियों के आधार पर नियम और कानून बनाए जाने की इस्लाम इजाजत देता है और इंसानी भलाई के लिए कानून बनाए जाने या एक ऐसे मुल्क में जहां मुख्तलिफ नज़रियात मजाहिब और फिक्र के लोग रहते हैं, उन सब पर एक कानून की हुकूमत होना चाहिए।
समान नागरिक संहिता नागरिकों को समान रूप से दांडिक और दीवानी विधि के दायरे में लाना चाहती है। आईपीसी और दूसरी दंड विधियों के द्वारा दांडिक विधि समस्त भारत में पहले से ही समान रूप से लागू है, और बहुत से दीवानी मामलों में भी, समान नागरिक संहिता के ही तरह के नियम हैं, मसलन सरकारी नौकरी में सभी कर्मचारियों पर समान रूप से नियम लागू हैं।
समान नागरिक संहिता के द्वारा धर्म के आंतरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा रहा है। यूनिफार्म सिविल कोड का विरोध मात्र एक राजनीतिक स्टंट के अतिरिक्त कुछ और नहीं है। संविधान की दुहाई देने वाले संविधान सभा के इस निर्णय को क्यों नकारते रहते हैं जिसमे स्पष्ट है कि यूनिफार्म सिविल कोड की रचना की जायेगी। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि शाहबानो केस के निर्णय से देश व्यापी बवाल के बाद तत्कालीन सरकार ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय को बदलने के लिए कानून तक बना डाला, उस क़ानून का लाभ क्या हुआ? वर्ष 2010 में उच्चतम न्यायालय द्वारा एक व्यवस्था देते हुए तलाकशुदा महिला को उसके अगले विवाह होने तक अथवा आजीवन अविवाहित रहने पर गुजारा भत्ता देने का आदेश पारित किया गया है। ऐसे बहुत से व्यक्तिगत विधियों के उदाहरण हैं, जिनमें नागरिकों को समान कानूनों के अधीन ही रहना होता है।
महत्वपूर्ण तथ्य है, कि कुछ लोगों के द्वारा समानता के अधिकार की प्रतीक समान नागरिक संहिता का विरोध किया जाना हास्यास्पद लगता है। जो लोग इसका विरोध धर्म और आस्था के नाम पर कर रहे हैं उनके द्वारा कोरोना काल में सभी धर्मों के धार्मिक स्थल पर उपासना मर्यादित अथवा धार्मीन स्थलों में सोशल डिस्टेंसिंग करने का इन कथित लोगों ने समर्थन किया था और तर्क दिया था “मानव जीवन को बचाना परम आवश्यक है, और सभी को लॉक डाउन का पालन करना चाहिए। तो आज इन कथित लोगों द्वारा यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध स्पष्ट करता है की मात्र राजनीति के चलते किसी खास दल को धर्म पर हमला का आरोप लगाते हुए टारगेट करने के नाम पर विरोध किया जा रहा है। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है, समान नागरिक संहिता सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार दिलाने के लिए ही है।