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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर भारत रत्न (मरणो उपरांत) सम्मानित किया जाएगा


कर्पूरी ठाकुर 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 और 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे।

5 मार्च 1967 से 31 जनवरी 1968 तक डिप्टी सीएम भी रहे हुए पिछडे वर्गों की हितों की वकालत करने वाले नेताओं में गिने जाते हैं
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया गांव में श्री गोकुल ठाकुर तथा माता  श्रीमती रामदुलारी देवी के याहा हुआ यानी कल उनकी जंयती है कर्पूरी ठाकुर का निधन 17 फरवरी 1988 को हुआ कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के सीएम और एक बार डिप्टी सीएम रहे बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे उन्होंने पहली बार 1952 में विधानसभा चुनाव जीता था 1967 में कर्पूरी ठाकुर ने ड्यूटी सी एम बनने पर बिहार में अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म कर दिया था।

       1940 में सिर्फ पांच लोग मैट्रिक पास हुए थे

समस्तीपुर के पिताजी या में 1904 में सिर्फ एक व्यक्ति मैट्रिक पास हुआ था 1934 में दो और 1940 में 5 लोग मैट्रिक पास हुए थे इनमें एक कारपोरेट ठाकुर थे वह 1952 में विधायक बने वे ऑस्ट्रेलिया जाने वाले डेलिगेशन नहीं था एक दोस्त से मांगा को फटा था कर्पूरी जी वही कोर्ट पहन कर चले गए वहां युगोंस्लाविया के मार्शल टीटू कोर्ट फटा देख लिया और उन्होंने नया कोर्ट गिफ्ट किया

         जेपी, लोहिया ,नरेंद्र देव उनके आदर्श थे

सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन पर पूर्वी ठाकुर के आदर्श जेपी लोहिया और आचार्य नरेंद्र थे कर्पूरी के पहले समाजवादी आंदोलन को खास उच्च वर्ग से ही मिलती थी।
कर्पूरी ठाकुर ने पूरे आंदोलन को लोगों के बीच ही रोक दिया जिनके बच्चे समाजवादी आंदोलन हार्ट थे वह 1970 में जब सरकार में मंत्री बने तो उन्होंने आठवीं तक शिक्षा मुक्त कर दी उर्दू को आदित्य राजभाषा का दर्जा दिया 5 एकड़ तक की जमीन पर मालगुजारी खत्म कर दी

देश के गरीब को पेंशन मिलती तो बड़ी बात होती है

इंदिरा गांधी ने सांसदों विधायकों को प्रलोभन देते हुए मासिक पेंशन का कानून बनाया था तब कर्पूरी ठाकुर ने कहा था की मासिक पेंशन देने का कानून ऐसे देश में पारित हुआ जहां 60 में 50 गरीब लोगों की औसत आमदनी साढे तीन आने से दो रुपए है यदि देश के गरीब लोगों के लिए ₹50 मासिक पेंशन की व्यवस्था हो जाती तो बड़ी बात होती है

(24 जनवरी, 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरीग्राम) में जन्मे कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था। ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए।) आज की दौड़ में केवल विधायक बन जाए तो अरबों करोड़ों के मालिक बन जाते हैं।लेकिन जननायक ऐसे ही नहीं बनते।

डाक टिकट गूगल से लिया गया है

1991 की तत्कालीन सरकार ने कर्पूरी ठाकुर की समाज कल्याण एवं पिछले वर्ग महिलाओं में के प्रति संघर्ष को देखते हुए उनके नाम से डाक टिकट जारी किया




ऐसे ही नहीं कर्पूरी ठाकुर को जननायक के कहते उनके ऐसे निर्णय जो देश में मिसाल बन गए आईए जानते हैं

* देश में पहली बार ओबीसी आरक्षण दिया था

* 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मुंगेरीलाल कमिशन लागू किया इसके कारण पिछड़ों को नौकरी में आरक्षण मिला

* देश के पहले मुख्यमंत्री जिन्होंने अपने राज्य में मैट्रिक तक पढ़ाई मुक्ति की थी

*बिहार में उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा दिया था

*1967 में पहली बार उप मुख्यमंत्री बनने पर अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म की थी

*गैर लाभकारी जमीन पर मालगुजारी टैक्स को बंद किया था

एमुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने फोर्थ क्लास वर्कर पर लिफ्ट या विजन करने पर रोक हटाई

*आर्थिक रूप से कमजोर स्वर्ण और महिलाओं के लिए आरक्षण दिया

जीवन परिचय


*पूरा                      नाम कर्पूरी ठाकुर
*अन्य                    नाम जननायक
*जन्म                  24 जनवरी, 1924
*जन्म                   भूमि पितौंझिया (कर्पूरी ग्राम),

समस्तीपुर,     बिहार
*मृत्यु                    17 फरवरी, 1988
*नागरिकता            भारतीय
*प्रसिद्धि              जन नायक माने जाते थे। सरल और

सरल हृदय राजनेता माने जाते थे।
*पार्टी                    सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय क्रान्ति दल,
                             जनतापार्टी, लोक दल
*पद                     बिहार के 11वें मुख्यमंत्री
*कार्य काल      22संबर, 1970 से 2 जून, 1971 तथा 24
                            जून, 1977 से 21 अप्रैल, 1979 तक

दो बार  बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे।


*अन्य जानकारी       बेदाग छवि के कर्पूरी ठाकुर आजादी से
                             पहले 2 बार और आजादी मिलने के

बाद    18 बार जेल गए।

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