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“कराह पूजा: आस्था, परंपरा और चमत्कार की अनोखी धार्मिक धरोहर

बलरामपुर जिले के रामचंद्रपुर विकासखंड के विजयनगर गाँव में हर साल यादव समाज द्वारा “कराह पूजा” का आयोजन किया जाता है। यह पूजा समाज की धार्मिक आस्था का प्रतीक मानी जाती है और इसे बड़े धूमधाम और आस्था के साथ निभाया जाता है। “कराह पूजा” सदियों पुरानी परंपरा का हिस्सा है और इसके आकर्षक एवं चमत्कारिक दृश्य देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहाँ आते हैं। इस परंपरा का सबसे खास और रोमांचक पहलू खौलते दूध से स्नान करने की अनोखी प्रथा है। इस आयोजन का हर पहलू श्रद्धालुओं के लिए अचंभित करने वाला होता है, और इसी कारण यह परंपरा समाज के लिए विशेष स्थान रखती है।



कराह पूजा का धार्मिक महत्व और उत्पत्ति

“कराह पूजा” का आयोजन विशेष रूप से यादव समाज के लोग करते हैं, जो इसे अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक परंपरा मानते हैं। उनका विश्वास है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इस परंपरा को शुरू किया था। उनके अनुसार, भगवान कृष्ण ने समाज में शारीरिक और मानसिक शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए इस पूजा का आयोजन किया, और तब से ही इसे हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यादव समाज का मानना है कि इस पूजा के माध्यम से वे भगवान की दिव्य शक्ति का अनुभव करते हैं और उनकी कृपा का साक्षात्कार करते हैं। यह पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि उनकी आस्था और परंपराओं को जीवित रखने का एक तरीका है।



पूजा की विधि और खौलते दूध से स्नान का चमत्कार

कराह पूजा का सबसे अद्भुत हिस्सा खौलते दूध से स्नान करने की परंपरा है। इसमें समाज के कुछ चुनिंदा लोग और विशेष रूप से प्रशिक्षित व्यक्ति खौलते दूध को अपने शरीर पर डालते हैं, जिससे देखने वाले लोग दंग रह जाते हैं। इस वर्ष के आयोजन में एक नौ वर्षीय बालक ने सभी को चौंकाते हुए अपने हाथों से खौलते दूध को उठाकर अपने शरीर पर डाल लिया। खास बात यह रही कि उसके शरीर पर न तो कोई जलन हुई और न ही कोई फोड़े के निशान आए। यह दृश्य वहाँ मौजूद हर व्यक्ति के लिए अविश्वसनीय था और सभी ने इसे भगवान की शक्ति और आशीर्वाद का प्रमाण माना।


      आयोजन की मुख्य विशेषताएं

कराह पूजा के दौरान कई विशेष रस्में निभाई जाती हैं। पूजा का आयोजन विधिवत रूप से पुजारी द्वारा किया जाता है, जो विशेष रूप से बनारस से आते हैं। इस बार के आयोजन में हवन कुंड में बिना माचिस की सहायता से अग्नि प्रज्वलित की गई, जो वहाँ उपस्थित जनसमूह के लिए आकर्षण का मुख्य केंद्र रहा। इस अनोखे आयोजन में बड़ी संख्या में लोग सम्मिलित होते हैं, जो विभिन्न विधियों और मंत्रों का पालन करते हुए पूजा में भाग लेते हैं। इसके अलावा, पूजा के दौरान खेल और विभिन्न प्रदर्शन भी आयोजित किए जाते हैं, जिनमें लोगों की भागीदारी होती है और वे इस परंपरा में शामिल होकर धार्मिक आस्था का अनुभव करते हैं।

        परंपरा के प्रति समाज का विश्वास

यादव समाज के लोग कराह पूजा को अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर मानते हैं। उनके अनुसार, यह परंपरा उन्हें उनके पूर्वजों और भगवान कृष्ण से जोड़ती है। उनके विश्वास के अनुसार, भगवान की कृपा से ही वे खौलते दूध का सामना बिना किसी चोट या जलन के कर पाते हैं। उनका मानना है कि इस आयोजन में भाग लेने से उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और वे हर संकट से बचे रहते हैं। इसी श्रद्धा के कारण वे इस परंपरा को पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आ रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों को भी इसे जारी रखने की प्रेरणा देते हैं।



        आस्था और अंधविश्वास के बीच एक बहस

“कराह पूजा” की परंपरा को लेकर समाज में मतभेद भी हैं। कुछ लोग इसे एक धार्मिक आस्था का प्रतीक मानते हैं और इसे ईश्वर के चमत्कार का रूप मानते हैं, जबकि कुछ लोग इसे अंधविश्वास का नाम देते हैं। आलोचकों के अनुसार, खौलते दूध से स्नान करना एक खतरनाक प्रथा है, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उचित नहीं है। उनके अनुसार, यह एक मानसिकता का प्रतीक है, जो अंधविश्वास को बढ़ावा देती है। लेकिन दूसरी ओर, इस पूजा में भाग लेने वाले यादव समाज के लोगों का मानना है कि यह भगवान की शक्ति और उनकी कृपा का प्रतीक है, और वे इसे पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ निभाते हैं।

        समाज के लिए कराह पूजा का महत्व

“कराह पूजा” यादव समाज के लोगों के लिए केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि उनकी आस्था और संस्कृति का प्रतीक है। यह पूजा समाज को एकजुट करती है और उनके विश्वास को मजबूत बनाती है। इसके माध्यम से वे भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और आस्था को व्यक्त करते हैं। यह पूजा उनके धार्मिक जीवन का हिस्सा बन चुकी है, और इसके प्रति उनकी आस्था इतनी गहरी है कि वे हर वर्ष इसे पूरी निष्ठा के साथ आयोजित करते हैं।


“कराह पूजा” एक अनोखी और चमत्कारिक परंपरा है, जो समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखे हुए है। चाहे इसे आस्था कहें या अंधविश्वास, यह परंपरा यादव समाज के लिए उनके पूर्वजों की देन है और उनके धार्मिक विश्वास का प्रतीक है। हर वर्ष इस आयोजन में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं, जो इस अनोखे धार्मिक अनुष्ठान का साक्षात्कार करते हैं और अपने विश्वास को और अधिक मजबूत बनाते हैं।

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