बलरामपुर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश सिराजुद्दीन कुरैशी की अध्यक्षता में पुलिस अन्वेषण एवं न्यायिक प्रक्रिया पर आधारित एक दिवसीय कार्यशाला सयुंक्त जिला कार्यालय भवन के सभाकक्ष में आयोजित की गई। कार्यशाला में न्यायपालिका, प्रशासन, पुलिस व फॉरेंसिक साइंस के अधिकारियों तथा विषय विशेषज्ञों ने पुलिस अन्वेषण व विवेचना, कार्यपालिक दण्डाधिकारियों के दायित्व, डॉक्टरों के कार्य तथा विभिन्न न्यायालयीन प्रक्रियाओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां दी। जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री सिराजुद्दीन कुरैशी ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि इस कार्यशाला का उद्देश्य है कि पुलिस अन्वेषण और न्यायिक प्रक्रियाओं की सूक्ष्म समझ बने तथा छोटी-छोटी ऐसी बाते और तथ्य जो महत्वपूर्ण होते हुए भी अन्वेषण का हिस्सा नहीं बन पाती है, उनकी जानकारी प्राप्त हो। उन्होंने कहा कि अनेक मामलों में साक्ष्य आने में कठिनाई होने पर दोषमुक्त होने की संभावनाएं बढ़ जाती है। दोष मुक्ति के मुख्यतः तीन कारणों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि गवाह का मुकरना, गवाह का पता न चलना और दोषपूर्ण जांच के कारण अपराधी को सजा नहीं मिल पाती, इसलिए विवेचना के दौरान इन बातों का विशेष ध्यान दिया जाये। जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मामलों में कड़ियों को जोड़ कर किसी निष्कर्ष पर पहंुचने का रास्ता प्रशस्त होता है। पॉक्सो एक्ट के मामलों में भी विशेष सावधानी बरतते हुए विवेचना की जानी चाहिए। साथ ही उन्होंने डॉक्टरों को संबोधित करते हुए कहा कि पोस्टमार्टम का विस्तृत अध्ययन व सभी बारिकियां रिपोर्ट में होनी चाहिए ताकि सभी तथ्य निष्पक्ष रूप से सामने आ सके और अपराध सिद्ध हो। उन्होंने नये दौर के अपराध अर्थात् साईबर क्राईम से सचेत व सतर्क रहने की बात करते हुए इन मामलों में भी विवेचना के महत्व को रेखांकित किया।
कलेक्टर श्री कुंदन कुमार ने कहा कि विभिन्न शासकीय गतिविधियों के साथ-साथ अधिकारियों का छोटे-छोटे समूहों में इस प्रकार का प्रशिक्षण कराया जाए। इन प्रशिक्षणों के माध्यम से न्यायपालिका, पुलिस व प्रशासन के मध्य समन्वय होता है जिससे न्यायिक प्रक्रिया आसान होने से दोषसिद्धि की दर बढ़ जाती है। वर्तमान में समय में वैज्ञानिक साक्ष्य अधिक प्रासंगिक हो गए हैं तथा सोशल मीडिया ने चुनौतियों को और बढ़ाया है। इस दौर में हमें जरूरत है क्षमता निर्माण की ताकि इस प्रकार के सायबर अपराधों को रोका जा सके। न्यायपालिका, पुलिस और प्रशासन के साथ तथा समन्वय से आमजन को सीधा लाभ मिलता है। सोशल मीडिया के इस दौर में क्रॉस बॉर्डर अपराध भी हो रहे हैं इसीलिए हमें सतर्क व सजग रहने की जरूरत है ताकि इन अपराधों को कम किया जा सके। पुलिस अधीक्षक श्री रामकृष्ण साहू ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया की गति बढ़ाने के उद्देश्य से कार्यशाला का आयोजन किया गया है। जिले में शांति स्थापना के लिए अपराधियों का दण्डित होना आवश्यक है इसलिए प्रकरणों का बेहतर अन्वेषण कर न्यायालय में प्रस्तुत किया जाये। दण्ड, अपराध और अपराधिक प्रवृति दोनों में ही कमी लाता है, यह कार्यशाला निश्चित ही दोषसिद्धि की दर बढ़ाने में मील की पत्थर साबित होगा।
प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री प्रफुल्ल कुमार सोनवानी ने एनडीपीएस एक्ट के महत्वपूर्ण बिन्दुओं को साझा करते हुए कहा कि जांच प्रक्रिया के पालन में त्रुटि होने से आरोपी के दोषमुक्त होने की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने एनडीपीएस की धारा 41(1), 41(2), धारा 50, सार्वजनिक व निजी स्थानों में कार्यवाही, गिरफ्तारी की प्रक्रिया के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए माननीय न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णय को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किया। उन्होंने आगे भी इसी प्रकार प्रशिक्षण आयोजित कर नए नियमों व प्रक्रियाओं के बारे में सतत् जानकारी देने की बात कही ताकि नियमों के स्पष्टता से अपराध को कम करने की दिशा में काम किया जा सके।
विशेष न्यायाधीश फास्ट ट्रैक कोर्ट श्रीमती वंदना दीपक देवांगन ने भी इस दौरान न्यायिक प्रक्रिया से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां अधिकारियों के साथ साझा की। उन्होंने कहा कि विवेचना के माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया को आसान बनाया जा सकता है और अपराधी को सजा दी जा सकती है। दस्तावेज भी महत्वपूर्ण साक्ष्य होते हैं, आवश्यकतानुसार उनका भी उपयोग करना चाहिए तथा बच्चों के मामलों में हमें और अधिक संवेदनशीलता के साथ कार्य करने की आवश्यकता है। न्यायाधीश श्रीमती देवांगन ने डीएनए से संबंधित कानूनों का अध्ययन करने की बात करते हुए कहा कि इसकी जानकारी होना भी बहुत आवश्यक है क्योंकि यह भी महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में उपयोग हो सकता है। उन्होंने पॉक्सो एक्ट, विशेष पुलिस यूनिट, बाल कल्याण समिति के बारे में अधिकारियों को जानकारी दी।
द्वितीय अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्री मधुसूदन चंद्राकर ने कहा कि विवेचना व अन्वेषण हमेशा विधि के अनुरूप अर्थात् विधि सम्मत होना चाहिए तथा विवेचना में त्रुटि होने से दिक्कतें आती है। विवेचक द्वारा छोटी-छोटी त्रुटियों व कमियों को दूर करने के प्रयास किए जाएं, इस कार्यशाला का भी यही उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि अपराध की सूचना प्राप्त होते ही तत्काल घटनास्थल पर जाना चाहिए और उसका नजरी-नक्शा तैयार कर साक्ष्य एकत्रित करने की दिशा में कार्य करना चाहिए। न्यायाधीश श्री चंद्राकर ने कहा कि अपराधिक मामलों में सक्षम अधिकारी द्वारा ही विवेचना किया जाए ताकि न्यायालय के समक्ष विवेचना तर्कसंगत और विधि सम्मत हो। उन्होंने द्वितीयक अर्थात् फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्री से परीक्षण के संबंध में विशेष जोर देते हुए कहा कि आवश्यकता अनुसार साक्ष्यों का परीक्षण कराया जाना चाहिए। विषय विशेषज्ञ साक्ष्य परीक्षण कर वस्तु स्थिति से अवगत करा सकते हैं ताकि निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके और अपराधी को सजा मिले।
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट श्री अजय कुमार खाखा ने अपने संबोधन में कहा कि विवेचना के कार्य में अनेक चुनौतियां होती है तथा कई बार साक्ष्य नहीं मिलने से न्यायिक कार्यवाही में रूकावटे आती है। संज्ञेय और गैर संज्ञेय अपराध, गिरफ्तारी, रिमांड, गंभीर अपराध, आबकारी एक्ट, मोटर व्हीकल एक्ट, किशोर न्याय अधिनियम के बारे में उन्होंने विस्तृत जानकारी दी। साथ ही सीसीटीएनएस तथा पॉक्सो एक्ट के बारे में भी जानकारियां सभी अधिकारियों के साथ साझा की।
कार्यशाला में फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्री के सीनियर साइंटिफिक ऑफिसर श्री एस के सिंह ने साक्ष्य एकत्रित करने के तरीके, दस्तावेजों में समानता, आई विटनेस, साइंटिफिक एविडेंस के महत्व और उसके उपयोग, क्राइम सीन की सुरक्षा करना, साक्ष्यों का पंचनामा के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी ताकि न्यायिक प्रक्रिया सरल हो और दोषसिद्धि की दर बढ़ जाये।
उन्होंने कहा कि कई क्राइम सीन क्रिएटेड भी होते हैं इसीलिए विवेचना अधिकारी द्वारा विस्तृत जांच की जानी चाहिए तथा साक्ष्य एकत्रित करने की सूक्ष्म जानकारी रखनी चाहिए। साक्ष्य एकत्रित करने में गलती तथा जांच या विवेचना ठीक से न होने पर न्याय प्रभावित होता है। उन्होंने डॉक्टरों को संबोधित करते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु होने और उसका शरीर असामान्य स्थिति में पाये जाने पर परिस्थिति और साक्ष्य को देखकर डॉक्टर एक फाइंडिंग बनाता है, इसलिए एनालिसिस ठीक नहीं होने से न्याय भी प्रभावित होती है। उन्होंने विभिन्न प्रकरणों का उदाहरण देकर कार्यवाही की प्रक्रिया और छोटी-छोटी गलतियों के बारे में भी अधिकारियों को अवगत कराया।
इस अवसर पर अपर कलेक्टर श्री एस.एस. पैंकरा, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक श्री सुशील कुमार नायक, व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-01 श्री डेविड निकसन लकड़ा, सुश्री अंकिता तिग्गा, संयुक्त कलेक्टर श्री एच.एल.गायकवाड़, श्री आर.एन.पाण्डेय, डिप्टी कलेक्टर श्री दीपक निकुंज, सर्व अनुविभागीय अधिकारी राजस्व व पुलिस सहित अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित थे।