छठ पर्व, जिसे लोक आस्था का महापर्व भी कहा जाता है, श्रद्धालुओं की गहरी आस्था और विश्वास का प्रतीक है। इस पर्व पर कन्हर नदी के घाट पर श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है, जहां वे सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
सुबह स्नान के बाद व्रती (व्रत रखने वाले) अपने परिवार की सुख-समृद्धि और संतान की लंबी उम्र की कामना के साथ उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर इस पर्व की पूर्ति करते हैं। छठ पूजा का महत्व मुख्यतः संतान और परिवार के कल्याण के लिए होता है, जिसमें संतान की सुरक्षा, समृद्धि, और परिवार में खुशहाली की कामना की जाती है।
छठ पर्व में व्रत रखने वालों को 36 घंटे तक निर्जला व्रत करना पड़ता है। यह कठिन व्रत श्रद्धालुओं के लिए एक परीक्षा के समान होता है, जिसमें बिना पानी पिए पूरे दिन और रात व्रत रखा जाता है।
छठ पूजा: महापर्व की चार प्रमुख कथाएं और उनके पीछे की मान्यताएं
छठ महापर्व का आयोजन मुख्य रूप से सूर्य देव और छठी मैया की पूजा-अर्चना के लिए किया जाता है। इस पर्व की मान्यता के अनुसार, छठी मैया सूर्य देव की बहन हैं और उनकी कृपा से संतान की लंबी उम्र और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य, और उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से चार प्रमुख कथाएं निम्नलिखित हैं:
1. राजा प्रियंवद की छठ कथा
प्राचीन कथा के अनुसार, राजा प्रियंवद को संतान सुख नहीं था। महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए एक यज्ञ कराया, और इस यज्ञ की खीर को राजा की पत्नी मालिनी ने ग्रहण किया। हालांकि, दुर्भाग्यवश उनके पुत्र का जन्म मृत हुआ, जिससे राजा गहरे दुख में डूब गए और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्यागने का विचार करने लगे। तभी भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री, देवी षष्ठी प्रकट हुईं और उन्हें यह व्रत करने का सुझाव दिया। राजा प्रियंवद ने छठी मैया की पूजा कर पुत्र सुख प्राप्त किया। तभी से इस व्रत का प्रचलन आरंभ हुआ और संतान की कामना से छठ पूजा की जाती है।
2. सूर्य पुत्र कर्ण की छठ कथा
महाभारत काल से जुड़ी एक कथा के अनुसार, सूर्यपुत्र कर्ण ने सबसे पहले सूर्य देव की पूजा के लिए अर्घ्य देने की परंपरा शुरू की थी। कर्ण, जो कि अंग प्रदेश के राजा थे, सूर्य देव के परम भक्त थे और प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते थे। सूर्य देव की कृपा से कर्ण महान योद्धा बने और उन्हें दिव्य कवच और कुंडल का वरदान मिला। उनके इसी आस्था और सूर्य आराधना की परंपरा छठ पर्व में अर्घ्य देने के रूप में प्रचलित हुई। आज भी इस महापर्व में सूर्य को जल अर्पित करने की यही परंपरा निभाई जाती है।
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3. द्रौपदी की छठ कथा
महाभारत काल में पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने छठ पूजा का व्रत रखा था। कहा जाता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए, तो उन्होंने इस कठिन परिस्थिति से उबरने के लिए छठ व्रत का संकल्प लिया। द्रौपदी ने इस व्रत का पालन कर सूर्य देव और छठी मैया से आशीर्वाद प्राप्त किया, जिससे उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को अपना खोया हुआ राज्य वापस मिल गया। इस कथा से यह मान्यता है कि छठ व्रत कठिन परिस्थितियों से मुक्ति और सुख-शांति के लिए फलदायी होता है।
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4. माता सीता की छठ कथा
रामायण काल में माता सीता ने भी छठ व्रत का पालन किया था। जब भगवान राम ने रावण का वध किया, तब उन पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया। इस पाप से मुक्ति पाने के लिए ऋषि मुद्गल और मुनि वशिष्ठ ने उन्हें छठ व्रत करने का सुझाव दिया। कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को माता सीता ने कष्टहरणी घाट पर सूर्य की उपासना करते हुए व्रत रखा। मुंगेर में स्थित इस स्थल पर माता सीता के चरण चिन्ह आज भी श्रद्धालुओं द्वारा पूजित हैं। इस कथा से छठ व्रत को पापों से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम माना गया है।
छठ पूजा का महत्व और लाभ
छठ पूजा न केवल संतान की लंबी उम्र और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए की जाती है, बल्कि यह सूर्य और छठी मैया के प्रति आस्था और कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम भी है। इस महापर्व को करने से जीवन की कठिनाइयां दूर होती हैं, मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और स्वास्थ्य में सुधार आता है। चार दिवसीय इस पर्व का हर चरण एक पवित्र और सात्विक भावना का प्रतीक है, जिसमें व्रतियों को कठोर नियमों का पालन करना होता है।
छठ महापर्व भारतीय संस्कृति का एक विशेष पर्व है, जो सूर्य देव और प्रकृति के प्रति आस्था को दर्शाता है।