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“अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज की शर्मनाक तस्वीर – ऑक्सीजन पर जिंदगी बचाने सड़क पर दौड़ता स्ट्रेचर”

गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ या मरीजों की मजबूरी?

अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल की शर्मनाक तस्वीर: ऑक्सीजन पर जिंदगी से जूझती महिला को स्ट्रेचर पर सड़क पार कराया गया

घटना

अंबिकापुर। छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग मुख्यालय अंबिकापुर स्थित श्रीमती देवेंद्र कुमारी सिंहदेव मेडिकल कॉलेज अस्पताल से एक बार फिर लापरवाही का चौंकाने वाला मामला सामने आया है।
यहां एक बुजुर्ग महिला मरीज, जो ऑक्सीजन पर थी, को परिजन और अस्पताल स्टाफ ने स्ट्रेचर पर लिटाकर सड़क पार कराया। परिजन स्ट्रेचर धकेलते रहे और अस्पताल की महिला कर्मचारी ऑक्सीजन सिलेंडर खींचते हुए आगे-आगे चल रही थी।



घटना कैमरे में कैद हो गई और अब यह तस्वीर अस्पताल प्रबंधन की जवाबदेही पर सवाल खड़ा कर रही है।

मरीज कौन थी?

मरीज बुजुर्ग महिला मनेन्द्रगढ़ की रहने वाली थीं।

यह वही क्षेत्र है, जहां से प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल विधायक हैं।

परिवार पहले से ही परेशान था, पर मजबूरी में उन्हें जोखिम उठाना पड़ा।


परिजनों का कहना था—
“आप सब कुछ अपनी आंखों से देख रहे हैं। हम क्या कहें? हमारी मजबूरी है कि किसी भी हालत में मरीज की जान बचानी है।”
अस्पताल परिसर की संरचना: समस्या की जड़

मेडिकल कॉलेज अस्पताल फिलहाल पुराने जिला अस्पताल परिसर में ही संचालित हो रहा है।

मुख्य अस्पताल भवन एक तरफ है।

शिशु मातृ वार्ड व नकीपुरिया महिला वार्ड दूसरी तरफ हैं।

बीच में मुख्य सड़क गुजरती है।


नतीजा यह है कि मरीजों को वार्ड से जांच के लिए मुख्य अस्पताल ले जाने के दौरान सड़क पार करनी पड़ती है।
सड़क पार कराने का यह तरीका पहले से मरीजों के लिए खतरनाक था, लेकिन इस बार ऑक्सीजन पर सांस ले रही महिला को ऐसे हालात में ले जाना लापरवाही का बड़ा उदाहरण है।
प्रबंधन का सफाईनामा

अस्पताल अधीक्षक डॉ. आर.सी. आर्या ने कहा:

मरीजों को लाने-ले जाने के लिए अस्पताल में इलेक्ट्रिक वाहन उपलब्ध है।

लेकिन घटना के वक्त ड्राइवर मौजूद नहीं था।

परिजन हड़बड़ी में मरीज को खुद ही स्ट्रेचर पर ले गए।


यह वही बयान है जो हर बार सामने आता है—“गलती परिजन की है”।
ठेका प्रणाली की खामियां

अस्पताल में इस समय ज्यादातर कर्मचारी ठेके पर रखे गए हैं।

हाल ही में नए ठेकेदार को काम मिला है।

कई कर्मचारी अप्रशिक्षित और अनुभवहीन हैं।

पुराने कर्मचारी व्यवस्था को बेहतर समझते थे, लेकिन उन्हें हटा दिया गया।


परिणाम यह हुआ कि—मरीजों की देखभाल प्रभावित हो रही है और व्यवस्थाएं बिखर रही हैं।

उठते सवाल

1. कब तक मरीजों को सड़क पर स्ट्रेचर में लिटाकर, ऑक्सीजन सिलेंडर खींचते हुए अस्पताल ले जाया जाएगा?


2. कब तक प्रबंधन हर बार जिम्मेदारी से पल्ला झाड़कर परिजनों पर दोष मढ़ेगा?


3. ठेके की व्यवस्था और अप्रशिक्षित कर्मचारियों की नियुक्ति पर सरकार कब ठोस कदम उठाएगी?


4. स्वास्थ्य मंत्री के ही क्षेत्र में मरीजों के साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है, तो बाकी जगहों की हालत का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं।


अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल की यह तस्वीर छत्तीसगढ़ की स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।
गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का नारा तभी सार्थक होगा, जब अस्पतालों में मरीजों की जिंदगी को सुरक्षित रखने की गारंटी हो, न कि परिजनों की मजबूरी और सिस्टम की लापरवाही पर छोड़ा जाए।

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